इस सप्ताह का प्रादर्श है - स्कंगलिंग or कंगलिंग

इस सप्ताह का प्रादर्श है - “स्कंगलिंग/कंगलिंग”

कोरोना वायरस (कोविड-19) के प्रभाव से उत्पन्न कठिन चुनौतिपूर्ण समय में जनता को संग्रहालय से ऑनलाइन के माध्यम से जोड़ने एवं उन्हें संग्रहालय के ऐतिहासिक, प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत के बारे में गहरी समझ को बढ़ावा देने के उद्देश से इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा शरू की गई नवीन श्रृंखला 'सप्ताह का प्रादर्श' के अंतर्गत इस माह के द्वितीय सप्ताह के प्रादर्श के रूप में लद्दाख के लद्दाखी जनजाति के मानव जंघास्थि से निर्मित एक तुरही “स्कंगलिंग/कंगलिंग” को दर्शकों के मध्य प्रदर्शित किया गया।

प्रस्तुत प्रादर्श स्कंगलिंग/कांगलिंग मानव जंघास्थि से निर्मित एक तुरही है जिसे हिमालय बौद्ध अंतिम संस्कारों में अनुष्ठानिक तुरही के रूप में उपयोग किया जाता है। चांदी से सुसज्जित इस तुरही को तांत्रिक अनुष्ठानों एवम बुरी आत्माओं को भगाने हेतु भी प्रयोग किया जाता है तिब्बती शामन, चाहे वह बौद्ध परंपरा से संबंधित हो या बाॅन परंपरा से या दोनों से, जादू-टोने और मौसम नियंत्रण के कई अनुष्ठानों में इस प्रकार की तुरही का प्रयोग करते हैं। इस वाद्य यंत्र की डरावनी ध्वनि मानव व्यक्तित्व पर काबू करने वाली हानिकारक आत्माओं या प्रतिशोध स्वरूप गर्जन, वायु, ओलावृष्टि और वर्षा की तात्विक शक्ति को रोक देने वाली दैवीय सत्ता के प्रभाव को दूर करती हैं। इस वाद्य यंत्र के फूंक कर बजाए जाने वाले धातुई भाग (मुँहनाल), मध्य भाग में अंगूठी नुमा संरचना तथा विस्तीर्ण अंतिम भाग पर पर लाल, हरे तथा नीले रंग के छोटे अर्ध-मूल्यवान पत्थरों से सजाया गया है।

दर्शक स्कंगलिंग/कंगलिंग का अवलोकन मानव संग्रहालय की फेसबुक साईट के माध्यम से घर बैठे कर सकते है।

Updated date: 09-06-2020 09:53:25